बेवफ़ाई पे जब भी आता है
वक्त तेरी तरह मुस्कराता है
मेरे पर काटना वही चाहेगा
उड़ना जो अभी सिखाता है
बातें करना उसे पसंद नहीं
ख़ामोश रहो तो रूठ जाता है
सिखाता बातों की है बाज़ीगरी
वादे करके मुकर वो जाता है
मेरी उम्र के सभी सफे लेकर
खुद लिखता है खुद मिटाता है
- अशोक जमनानी
ग़ज़ल: वक्त
Labels:
अशोक जमनानी,
होशंगाबाद,
GAZAL,
waqt gajhal by ASHOK JAMNANI