मेरे घर की उस दहलीज़ पर
तुम जहाँ खड़े होकर
बुलाते थे मुझे
वहां अब तुम न आते
न बुलाते हो मुझे
पर अब भी तुम्हारी आवाज़
रक्खी है उसी दहलीज़ पर
और मैं गुजरता हूँ
उस दहलीज़ से
कानों पर हाथ रखकर
सब लोग हँसते हैं
कहते हैं इसे
मेरा बेवज़ह का ख्याल
लेकिन कुछ लोग हैं जो
न हँसते न कुछ कहते हैं
बस देखते हैं
चुपचाप मेरी ओर
और उन चंद लोगो को
देखकर समझ जाता हूँ मैं
कि ये लोग भी
गुज़रते होंगे
किसी न किसी दहलीज़ से
कानों पर
हाथ रखकर
तुम जहाँ खड़े होकर
बुलाते थे मुझे
वहां अब तुम न आते
न बुलाते हो मुझे
पर अब भी तुम्हारी आवाज़
रक्खी है उसी दहलीज़ पर
और मैं गुजरता हूँ
उस दहलीज़ से
कानों पर हाथ रखकर
सब लोग हँसते हैं
कहते हैं इसे
मेरा बेवज़ह का ख्याल
लेकिन कुछ लोग हैं जो
न हँसते न कुछ कहते हैं
बस देखते हैं
चुपचाप मेरी ओर
और उन चंद लोगो को
देखकर समझ जाता हूँ मैं
कि ये लोग भी
गुज़रते होंगे
किसी न किसी दहलीज़ से
कानों पर
हाथ रखकर