कुछ दिनों पहले मंत्री जी के काफिले से दो-चार होना पड़ा। आम आदमी होने के नाते मैं चुपचाप सड़क के किनारे खड़ा हो गया ताकि ‘साहब’ लोगों की गाड़ियां आराम से निकल जायें। मंत्री जी की कार के आगे पुलिस की गाड़ी थी और पीछे कलेक्टर साहब की। लेखक होने के नाते सोचना मेरा धर्म है इसलिए मैंने तुरंत ही सोचना शुरू कर दिया कि आखिर कौन किसकी रक्षा कर रहा है? यदि आगे वाले रक्षक हैं तो इसका मतलब हुआ कि पुलिस और मंत्री जी कलेक्टर की रक्षा कर रहे हैं और यदि पीछे वाले रक्षक हैं तो इसका मतलब हुआ कि कलेक्टर और मंत्री पुलिस की रक्षा कर रहे हैं। यदि आगे-पीछे वाले रक्षक हैं तो सब एक दूसरे की रक्षा कर रहे हैं। शायद यही ज़वाब भी है। इस देश में सत्ता से जुड़े सभी लोग एक दूसरे की रक्षा कर रहे हैं ताकि वो खुद भी सुरक्षित रह सकें। अलग-अलग नज़र आने के बावज़ूद ये सब एक ही हैं बस आम आदमी की नज़र का धोखा बना रहे इसीलिए एक भ्रम का पोषण किया जा रहा है। बचपन में एक कवितानुमा पहेली पढ़ी थी शायद आपने भी पढ़ी होगी; पढ़कर और बहुत सोचकर उत्तर मुझे भेज दीजिए। कवितानुमा पहेली है-
तीतर के दो आगे तीतर
तीतर के दो पीछे तीतर
आगे तीतर पीछे तीतर
अब बोलो कि कितने तीतर
तीतर के दो आगे तीतर
तीतर के दो पीछे तीतर
आगे तीतर पीछे तीतर
अब बोलो कि कितने तीतर
- अशोक जमनानी