नर्मदा यात्रा : 44 : सतधारा
भेड़ाघाट के बाद से नर्मदा के ठहरे-ठहरे से प्रवाह को देखता था तो सोचता था कि नर्मदा कुछ कहती क्यों नहीं। नर्मदा का किलोल करता स्वरूप देखना-सुनना मुझे सदा से बहुत प्रिय रहा है। सतधारा पहुंचकर नर्मदा मुखर हुईं तो मैं देर तक वहीँ रुका रहा। नर्मदा का चट्टानों से गहरा रिश्ता है। चट्टानों की लंबी पट्टी पर ही नर्मदा बहती है और जहाँ कहीं चट्टानें बाहर आती हैं वहां नर्मदा वैसे ही शोर करती है जैसे कोई लाड़ली छोटी बच्ची पिता की गोद से कुछ देर उतारे जाने पर करती है। वैसे नर्मदा जैसी बेटी पाकर कौन उतरेगा गोद से ! लेकिन शिव उतारते हैं मस्तक से, मेकल उतरता है पर्वत से ताकि हमें जीवन मिले और हम जीवन पाकर नर्मदा को माँ कहें और भूल जाएं वैसे ही जैसे आजकल भूल जाते हैं सब बेटे …… माँ को …
- अशोक जमनानी