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सोमवार, जनवरी 19, 2015

नर्मदा यात्रा : 41 : कूड़ा- जमुनिया

नर्मदा यात्रा : 41 : कूड़ा- जमुनिया






















आगे बढ़ती यात्रा में दक्षिण तट का जमुनिया और उत्तर तट का कूड़ा छोटे-छोटे गाँव हैं। यहाँ रुककर हम कुछ बात अलूवियल मैदान की कर सकते हैं जो  छूट गयी है। ये मैदानी क्षेत्र नर्मदांचल का सर्वाधिक उपजाऊ क्षेत्र है। नहरों के जाल के कारण अधिकांश भूमि सिंचित है और अब तीन फसलें भी देने लगी है। गेहूं, धान, सोयाबीन, तुवर, मूंग, गन्ना, सरसों, ज्वार, मक्का जैसी सभी फसलें यहाँ होती हैं और फलों के बगीचे, सब्जियों की विभिन्न किस्मों के साथ, इस सदा हरित क्षेत्र की विशेषता है।  लेकिन अब इस क्षेत्र पर भी  उद्योग जगत आँखें गड़ाये बैठा है। उद्योग विकास का  महत्वपूर्ण अंग हैं लेकिन तीन फसलें देने वाले कृषि क्षेत्र को यदि उद्योगों को सौंपा गया तो यह पाने से अधिक खोने की दास्तान बन जायेगा। मध्य प्रदेश के पास ऐसी भूमि भी है जो बंजर है लेकिन उद्योग जगत को तीन फसल देने वाली ज़मीन चाहिये और जिसे दस एकड़ पर उद्योग लगाना है वो सौ एकड़ ज़मीन चाहता है। यह एक किस्म की लूट है जो विकास के नाम पर की जा रही है। उद्योग ज़रूरी हैं और इस क्षेत्र में कृषि से संबंध रखने वाले उद्योग किसानों के लिए बहुत उपयोगी भी होंगे साथ ही  इन उद्योगों की ज़मीन की ज़रुरत भी बहुत कम ही होगी। लेकिन भारी उद्योग अथवा भूमि हड़पने के लिए लगाये गए उद्योग विकास नहीं विनाश करेंगे। हमें यह याद रखना होगा कि नर्मदांचल का यह हिस्सा देश में सर्वाधिक उत्पादन करने वाला कृषि क्षेत्र है। मध्य प्रदेश की ज़रुरत पूरी करने के साथ यहाँ से देश के दूसरे राज्यों को भी खाद्यान्न भेजा जाता है।
मैं इसे मध्य प्रदेश का अन्न क्षेत्र कहता हूँ।
यहाँ बड़े उद्योग लगाने का अर्थ होगा, पेट काटकर मुकुट बनाना।
हमने ऐसा किया तो यह मुकुट देह के स्थान पर लाश के माथे सजेगा।
लेकिन क्या सजेगा !!!!!!!!

- अशोक जमनानी          






 
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