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शनिवार, जनवरी 10, 2015

नर्मदा यात्रा : 40 ; झांसी घाट


नर्मदा यात्रा : 40 ; झांसी घाट






सनेर संगम से आगे बढ़ते हैं तो झांसी घाट पर नर्मदा का शांत प्रवाह रोकता है। नर्मदा के मैदानी क्षेत्र की लोक परम्पराएं पर्वतीय क्षेत्र से कुछ भिन्न हैं। इन्हीं लोक परम्पराओं का एक हिस्सा है - भंडारा।  फसलों के आने पर या ख़ुशी के किसी अन्य अवसर पर नर्मदा तट पर भंडारे की परम्परा इन बीते वर्षों में बहुत अधिक विस्तार पा चुकी है। इसके मूल  में नवीन समृद्धि का तो योगदान है ही साथ ही गाँवों से कस्बों में आकर बसे ग्रामीेण अपनी  उत्सव प्रियता के राग को इसी बहाने दोहरा भी लेते हैं। घाट पर चल रही कथा के चित्र खींचे तो पंडित जी ने प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया। भंडारे में भोजन का आमंत्रण मिलने पर मैं क्यों मना करता तुरंत पेट का कहना माना। लोग आत्मा की आवाज़ सुनते हैं, दिल की आवाज़ सुनते हैं मैं पेट की आवाज़ सुनता हूँ।अब  आनंद का और क्या बखान करूँ,  वैसे भोजन लाज़वाब था। ऊपर एक कुटिया में बैठे बाबाजी भी मुझे आनंदित लगे तो उनकी तस्वीर लेनी चाही उन्होंने कहा ' रुको ज़रा सिर पर बंधा कपड़ा हटा लूँ , जटाओं को फैलाऊंगा तो फोटो अच्छी  आयेगी फोटोसेशन के बाद वे अपनी कहानी सुनाने बैठे बताया की दो दिन पहले ही जेल से छूटा हूँ। मैं हैरान हुआ तो उन्होंने बताया कि सत्रह लोगों की धुनाई की थी। मैंने पूछा फिर छूटे कैसे?तो कहने लगे मैंने जज साहब से कहा कि कोई  औरत को परेशान करे और वो उनकी धुनाई कर दे तो  उसको ईनाम देते हैं लेकिन आदमी को कोई परेशान करे और वो उनकी धुनाई करे तो जेल भेज देते हैं। ये कैसा न्याय है न्याय तो आदमी औरत के लिए एक जैसा होना चाहिये। जज साहब के दिल को बात छू गयी और बाबा जी बाइज्ज़त बरी हो गए।
 वहां ग़ालिब याद आये ' रोएंगे हम हज़ार बार कोई हमें सताये क्यूँ …… '
- अशोक जमनानी 
 
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