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शनिवार, जनवरी 10, 2015

नर्मदा यात्रा : 39 : सनेर संगम

नर्मदा यात्रा : 39 : सनेर संगम



बगरई से आगे के सफ़र में नर्मदा से एक और सहायक नदी सनेर आकर मिलती है।  बरगी बाँध बनने के बाद जबलपुर से हंडिया के बीच अलूवियल मैदानों में नर्मदा का प्रवाह  सहायक नदियों के कारण कुछ गति पकड़ता है। सनेर , शेर, हिरण, शक्कर, दूधी, तवा, गंजाल आदि नदियां नर्मदा में आकर मिलतीं हैं और नर्मदा की धारा को पुष्ट करतीं हैं। ये सभी नदियां छोटी होने के बावज़ूद इस कारण महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इस पूरे मैदानी क्षेत्र में सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला नर्मदा से दूर होती चली गयी है; इसी कारण नर्मदा का प्रवाह भी प्रभावित होता है। छोटी नदियां अपना प्रवाह नर्मदा को सौंपकर नर्मदा में विलीन होतीं हैं तो नर्मदा अविरल बनी रहती है। पर अब सबसे अधिक संकट इन छोटी नदियों पर है। बारिश के दो-तीन महीने बाद ये सूखने लगती हैं और इनके साथ सूखता है नर्मदा का प्रवाह। छोटी नदियों की तरह और भी कई छोटी हक़ीक़तें हैं जो संकट में हैं और  इन्हें संकट में लाने वाले इस मुग़ालते में जी रहे हैं कि बड़ों के  अस्तित्व में छोटों की कोई भूमिका नहीं है।  पर ख़त्म होती सहायक नदियों की पीड़ा नर्मदा समझती है इसलिए उसने वादा किया है कि वे रहेंगी तो नर्मदा भी चलेगी वे ख़त्म होंगी तो नर्मदा भी ठहर जायेगी। अब कहीं नर्मदा का प्रवाह ठहरा-ठहरा मिलता है तो लगता है कोई छोटी नदी होगी सूख गयी होगी। नर्मदा ठहरी है उसी नदी के कारण। अब नर्मदा तो नर्मदा है कोई बड़ा कॉर्पोरेट हॉउस तो है नहीं जो  छोटों को मिटाकर बड़ी हो जाये  …

- अशोक जमनानी                 







 
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