अमृत लाल वेगड़
लेकिन अपनी आयु के आठ दशक पार कर चुके वेगड़ जी अपने सहज विनोदी स्वभाव के बावजूद तब व्यथित लगते हैं जब उनसे मैं कुछ दशक पूर्व की नर्मदा और अब की नर्मदा के बारे में बात करता हूँ। वो कहते हैं " मैंने अपनी पहली किताब का नाम सौन्दर्य की नदी नर्मदा इसलिए रखा क्योंकि मुझे लगा कि इस नदी के जैसा सौन्दर्य तो कहीं हो ही नहीं सकता और दूसरी किताब का आरम्भ भी इस प्रार्थना को प्रथम पृष्ठ पर लिखकर किया कि नर्मदा तुम अत्यंत सुन्दर हो अपने सौन्दर्य का प्रसाद मुझे दो ताकि मैं उसे सब तक पहुंचा सकूँ।लेकिन कुछ समय पूर्व प्रकाशित अपनी तीसरी किताब के बारे में वो कहते हैं कि अब मैंने नर्मदा की जो दुर्दशा देखी है उसके बाद नर्मदा का सौन्दर्य तो छोड़िये मुझे तो अकेले सौन्दर्य शब्द का उपयोग करने में भी डर लगने लगा है और इस किताब में मैंने इस शब्द के प्रयोग से स्वयं को यथासंभव दूर ही रखा है।"
जो लोग आर्थिक उदारीकरण के साहित्य पर प्रभाव जानना चाहते हैं उनके लिए यह कहना ही पर्याप्त होगा कि एक कला-साधक जिन्हें एक नदी के सौन्दर्य ने साहित्यकार बना दिया अब वो प्रकृति के सौन्दर्य का प्रतीक रही एक नदी-नर्मदा के दोहन-शोषण को देखकर इतने विचलित हैं कि आजकल उन्हें सौन्दर्य शब्द के प्रयोग से ही डर लगता है।
- अशोक जमनानी