शरद जोशी - हरिशंकर परसाई स्मृति समारोह
वे सभी पत्र मेरे लिए
अमूल्य हैं लेकिन सबसे अधिक महत्वपूर्ण है बहुत छोटे -छोटे कस्बों ओर
गाँवों में सहित्यिक अभिरुचि संपन्न लोगों का मौजूद होना. बड़े शहरों
के अधिकांश पाठक संभवतः किसी कृति के साथ वैसा आत्मीय न्याय नहीं कर पाते
जैसा छोटे-छोटे कस्बों और गाँवों के पाठक करते हैं. शायद बड़े शहरों के
लोगों के पास इतना वक़्त ही नहीं है कि किसी कृति को पूरे मनोयोग से पढ़कर
उसके बारे में लेखक को लम्बा सा पत्र लिखें. अधिकांश शहरी पाठक या तो
मुझे फोन करते हैं या फिर छोटा सा इ-मेल भेजते हैं. पाठकों के अधिकांश
पत्र छोटे कस्बों या छोटे शहरों से ही आते हैं. साहित्य अकादमी के इस
प्रयास ने मेरे उस विश्वास को पुष्ट ही किया जो हमेशा मुझसे कहता है.
इन्सान एक भी न हो और भीड़ बहुत हो
जन्नत हो वो जगह पर मुझको खुदा न दे