जिस वक्त
हाथ तुम्हारा था
मेरे हाथ में
और मैं जानता था
कि आने वाले
किसी भी लम्हें में
तुम पूरी नज़र से
देखकर मेरी ओर
मुस्कराकर
आहिस्ता-आहिस्ता
खींच लोगे
हाथ अपना
उस वक्त
मैं पूरे जोर से
भींच लेना चाहता था
अपने हाथ में
हाथ तुम्हारा
पर मैंने अपने स्पर्श में
भर दी नर्मी इतनी
कि तुम महसूस कर सको
वो इज़ाज़त
जो तुम्हें खींच लेने दे
हाथ अपना
और तुम्हारे जाने के बाद
मैं ढूंढ सकूं अपने हाथ में
तुम्हारे हाथ की वो लकीर
जो शायद छूट गयी हो
मेरे हाथ में ...........
अशोक जमनानी