सृजन-संवाद : बैतूल
दो दिन बैतूल में बिताये। साहित्य अकादमी की कार्यशाला और भारत-भारती विद्यालय। वहां के विद्यार्थियों ने जो सम्मान और स्नेह दिया उसे भूल पाना मुश्किल है। विद्यालय के संचालक श्री मोहन नागर जी ने भी हर एक ज़रुरत का व्यक्तिगत रूप से ध्यान रखा । प्रकृति की उदारता इस विद्यालय का संग-साथ इस ढंग से निभाती है कि वहां से लौटना उदास कर जाता है …. दो दिन वहां गुज़रे नहीं … वो तो पंख लगाकर उड़ गए …
- अस्शोक जमनानी