ग़ज़ल
चुप रहने का इनाम न इससे बड़ा हुआ
प्यादे को बादशाह का दर्ज़ा दिया गया
वो लोग हमें बहलाने के कई जानते हुनर
संविधान में देखिये मालिक लिखा गया
कुर्सियां कायम रहीं हँसती रहीं सब देख
हम लोग मुतमईन हमने शोर तो किया
ज़ुबान है कटी हुई और कटे हैं हाथ-पाँव
दिल मगर इस हाल में कैसे धड़क गया
खुदा न बन सका तो वो इंसान बन जाता
बुत होना जिसने बेवज़ह क़ुबूल कर लिया
- अशोक जमनानी
चुप रहने का इनाम न इससे बड़ा हुआ
प्यादे को बादशाह का दर्ज़ा दिया गया
वो लोग हमें बहलाने के कई जानते हुनर
संविधान में देखिये मालिक लिखा गया
कुर्सियां कायम रहीं हँसती रहीं सब देख
हम लोग मुतमईन हमने शोर तो किया
ज़ुबान है कटी हुई और कटे हैं हाथ-पाँव
दिल मगर इस हाल में कैसे धड़क गया
खुदा न बन सका तो वो इंसान बन जाता
बुत होना जिसने बेवज़ह क़ुबूल कर लिया
- अशोक जमनानी