Home » अशोक जमनानी » कविता » ASHOK JAMNANI » वध कर वध कर वध कर वध कर वध कर वध कर हे राम दशानन वध कर घनघोर गहन तम पूजित निर्लज्ज भाव से वन्दित है मर्यादा पथ खंडित हुआ असुर आचरण मंडित हर वैदेही फिर बंदित शुभ-पंथ-प्रयाण है शंकित धर अस्त्र-शस्त्र अभिमंत्रित जन सैन्य प्रबल संग सध कर अब वध कर वध कर वध कर हे राम दशानन वध कर - अशोक जमनानी Share: Facebook Twitter Google+ StumbleUpon Digg Delicious LinkedIn Reddit Technorati