अभी भी
मेरी मुठ्ठी में कुछ वक़्त है
अभी भी
मेरी हथेलियों में कुछ लकीरें हैं
अभी भी
मेरी उँगलियों में कुछ जुम्बिश है
अभी भी
मैं छू सकता तुम्हें गर चाहूं तो
पर न जाने क्यों
ये वक़्त
ये लकीरें
ये जुम्बिश
ये स्पर्श
लगते हैं बेमानी
उस वक़्त
जिस वक़्त
चुकाता हूँ मैं
मोल मुस्कराहटों का
दर्द की किसी
बेमुरव्वत
दुकान पर .........